फिल्म '72 हूरें' के विवाद पर, कुरान में हूरों की संख्या नहीं: विद्वानों का कहना

फिल्म '72 हूरें' के विवाद पर, कुरान में हूरों की संख्या नहीं: विद्वानों का कहना

युवाओं को जन्नत में 72 हूरें दिलाने का लालच दिखाकर कैसे आतंकी बनाया जाता है, इसकी कहानी बताने वाली फिल्म 72 हूरें रिलीज होने से पहले ही विवादों में घिर गई है। कुछ इस्लामी विद्वानों ने कहा है कि 72 हूरों की अवधारणा का कुरान में उल्लेख नहीं है और यह एक पश्चिमी अवधारणा है।

इस्लामी विद्वानों के अनुसार, कुरान में केवल कुछ छंदों में "हूर" शब्द का उल्लेख है, लेकिन यह उनकी संख्या निर्दिष्ट नहीं करता है। "हूर" शब्द का अनुवाद आम तौर पर "सुंदर युवती" या "कुंवारी" के रूप में किया जाता है। हालाँकि, विद्वानों का कहना है कि कुरान यह नहीं कहता है कि हूरें केवल आतंकवादियों को दी जाती हैं या वे जन्नत में अच्छे कर्मों का एकमात्र इनाम हैं।

दरअसल, विद्वानों का कहना है कि कुरान सिखाता है कि सभी अच्छे काम, चाहे वे किसी आतंकवादी द्वारा किए गए हों या गैर-आतंकवादी द्वारा, जन्नत में पुरस्कृत किए जाएंगे। उनका यह भी कहना है कि आतंकवादियों के लिए नरक में भी जगह नहीं है, क्योंकि उन्होंने मानवता के खिलाफ गंभीर पाप किए हैं।

फिल्म के निर्देशक-लेखक संजय पूरन सिंह चौहान ने कहा है कि उन्हें फिल्म को लेकर चल रहे विवाद की जानकारी है, लेकिन उनका कहना है कि यह किसी धर्म के खिलाफ नहीं है. उनका कहना है कि फिल्म केवल आतंकवाद के पीछे की वास्तविक मानसिकता को दिखाने की कोशिश कर रही है और इसका उद्देश्य किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है।

फिल्म के निर्माता अशोक पंडित ने भी कहा है कि फिल्म किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है और यह केवल आतंकवाद के बारे में सच्चाई दिखाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा है कि जिस किसी को भी फिल्म से परेशानी होगी वह उससे बहस करने को तैयार हैं.

फिल्म 72 हूरें 7 जुलाई को भोजपुरी, कश्मीरी, मराठी समेत 10 भाषाओं में रिलीज होने वाली है। अब देखना यह है कि फिल्म को जनता का कैसा रिस्पॉन्स मिलता है।

इस बीच फिल्म को लेकर विवाद जारी रहने की संभावना है. कुछ लोगों का मानना है कि यह फिल्म मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने की एक खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना कोशिश है। दूसरों का मानना है कि यह फिल्म कला का एक आवश्यक और महत्वपूर्ण काम है जो आतंकवाद के अंधेरे पक्ष पर प्रकाश डालती है।

केवल समय ही बताएगा कि फिल्म को कैसे याद किया जाएगा, लेकिन एक बात निश्चित है: यह एक ऐसी फिल्म है जिसने धर्म, आतंकवाद और मुक्त भाषण के बारे में एक बड़ी बहस छेड़ दी है।