प्रधानमंत्री ने दिल्ली के भारत मंडपम में अखिल भारतीय शिक्षा समागम का उद्घाटन किया

प्रधानमंत्री ने दिल्ली के भारत मंडपम में अखिल भारतीय शिक्षा समागम का उद्घाटन किया

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज दिल्ली के भारत मंडपम में शिक्षा मंत्रालय तथा कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अखिल भारतीय शिक्षा समागम का उद्घाटन किया। इस समारोह का आयोजन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की तीसरी वर्षगांठ के अवसर पर किया गया। उन्होंने पीएम-श्री योजना के तहत धनराशि की पहली किस्त भी जारी की। कुल 6207 स्कूलों को पहली किस्त प्राप्त हुईजिसकी कुल राशि 630 करोड़ रुपये थी। उन्होंने 12 भारतीय भाषाओं में अनुवादित शिक्षा और कौशल पाठ्यक्रम की पुस्तकों का विमोचन भी किया।

             

प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया।

इस अवसर पर केन्द्रीय शिक्षा तथा कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, शिक्षा राज्यमत्री राजकुमार रंजन सिंह, अन्नपूर्णा देवी, डॉ. सुभाष सरकार और शिक्षा और कौशल विकास मंत्रालय के सचिव अन्य गणमान्य लोगों के साथ उपस्थित थे।

सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने राष्ट्र की नियति को बदल सकने वाले कारकों में शिक्षा की प्रधानता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “21वीं सदी का भारत जिन लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ रहा है, उन्हें हासिल करने में हमारी शिक्षा प्रणाली की बहुत बड़ी भूमिका है।” अखिल भारतीय शिक्षा समागम के महत्व पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षा के लिए चर्चा और संवाद महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने पिछले अखिल भारतीय शिक्षा समागम के वाराणसी के नवनिर्मित रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में होने और इस वर्ष के अखिल भारतीय शिक्षा समागम के बिल्कुल नए भारत मंडपम में होने के संयोग का उल्लेख किया। मंडपम के औपचारिक उद्घाटन के बाद यहां आयोजित होने वाला यह पहला कार्यक्रम है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी के रुद्राक्ष से लेकर आधुनिक भारत मंडपम तक की अखिल भारतीय शिक्षा समागम की यात्रा में प्राचीन और आधुनिक के मिश्रण का संदेश छिपा है। उन्होंने कहा कि एक ओर भारत की शिक्षा प्रणाली यहां की प्राचीन परंपराओं को संरक्षित कर रही है, वहीं दूसरी ओर देश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है। प्रधानमंत्री ने शिक्षा क्षेत्र में अब तक हुई प्रगति में योगदान देने वाले सभी लोगों को बधाई दी। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति की तीसरी वर्षगांठ है, प्रधानमंत्री ने इस नीति को एक मिशन के रूप में लेने और इसकी अपार प्रगति में योगदान देने के लिए सभी बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और शिक्षकों को धन्यवाद दिया। इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी के बारे में बोलते हुए, प्रधानमंत्री ने कौशल तथा शिक्षा एवं नवीन तकनीकों के प्रदर्शन पर प्रकाश डाला। उन्होंने देश में शिक्षा और स्कूली शिक्षा के बदलते स्वरूप की चर्चा की, जिसमें छोटे बच्चे खेल-खेल में अनुभवों के माध्यम से सीख रहे हैं। उन्होंने इस दिशा में निरंतर प्रगति की आशा व्यक्त की। उन्होंने अतिथियों से इस प्रदर्शनी का अवलोकन करने का आग्रह भी किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि युगांतकारी बदलावों में कुछ समय लगता है। एनईपी के उद्घाटन के समय कवर किए जाने वाले विशाल कैनवास को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने सभी हितधारकों के समर्पण और नई अवधारणाओं को अपनाने की उनकी इच्छा की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि एनईपी में पारंपरिक ज्ञान और भविष्य की प्रौद्योगिकियों को समान महत्व दिया गया है। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा में नए पाठ्यक्रम, क्षेत्रीय भाषाओं में पुस्तकों, उच्च शिक्षा और देश के अनुसंधान संबंधी इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए शिक्षा जगत के सभी हितधारकों की कड़ी मेहनत का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी अब समझ गए हैं कि 10+2 प्रणाली के स्थान पर अब 5+3+3+4 प्रणाली चल रही है। पूरे देश में एकरूपता लाते हुए तीन साल की उम्र से शिक्षा शुरू होगी। उन्होंने यह भी बताया कि मंत्रिमंडल ने नेशनल रिसर्च फाउंडेशन विधेयक को संसद में पेश करने को मंजूरी दे दी है। एनईपी के तहत राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा जल्द ही सामने आएगी। 3-8 साल के विद्यार्थियों के लिए रूपरेखा तैयार है। पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम होगा और एनसीईआरटी इसके लिए नए पाठ्यक्रम की पुस्तकें तैयार कर रहा है। प्रधानमंत्री ने बताया कि क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा दिए जाने के परिणामस्वरूप तीसरी से लेकर 12वीं कक्षा तक के लिए 22 विभिन्न भाषाओं में लगभग 130 विभिन्न विषयों की नई पुस्तकें आ रही हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी विद्यार्थी का मूल्यांकन उसकी क्षमताओं के बजाय उसकी भाषा के आधार पर करना, उसके साथ सबसे बड़ा अन्याय है। प्रधानमंत्री ने कहा, “मातृभाषा में शिक्षा देश में विद्यार्थियों के लिए न्याय के एक नए स्वरूप की शुरुआत कर रही है। यह सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है।” दुनिया में भाषाओं की बहुलता और उनके महत्व को ध्यान में रखते हुए, प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि दुनिया के कई विकसित देशों को उनकी स्थानीय भाषा के कारण ही बढ़त मिली है। प्रधानमंत्री ने यूरोप का उदाहरण देते हुए कहा कि ज्यादातर देश अपनी मूल भाषा का ही उपयोग करते हैं। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि भारत में कई स्थापित भाषाएं हैं, फिर भी उन्हें पिछड़ेपन की निशानी के रूप में प्रस्तुत किया गया और जो लोग अंग्रेजी नहीं बोल सकते थे उनकी उपेक्षा की गई और उनकी प्रतिभा को मान्यता नहीं दी गई। प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके  परिणामस्वरूप ग्रामीण इलाकों के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हुए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आगमन के साथ देश ने अब इस धारणा को त्यागना शुरू कर दिया है। श्री मोदी ने कहा, “यहां तक ​​कि संयुक्त राष्ट्र में भी, मैं भारतीय भाषा में बोलता हूं।”

प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि सामाजिक विज्ञान से लेकर इंजीनियरिंग तक के विषय अब भारतीय भाषाओं में पढ़ाए जायेंगे। श्री मोदी ने कहा, “जब विद्यार्थी किसी भाषा में आत्मविश्वास से लैस होंगे, तो उनका कौशल और प्रतिभा बिना किसी अड़चन के सामने आएगी।” उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग अपने निहित स्वार्थों के लिए भाषा का राजनीतिकरण करने की कोशिश करते हैं, उन्हें अब अपनी दुकानें बंद करनी होंगी। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश की हर भाषा को उचित सम्मान और श्रेय देगी।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें अमृत काल के अगले 25 वर्षों के दौरान एक ऊर्जावान नई पीढ़ी तैयार करनी है। गुलामी की मानसिकता से मुक्त, नवाचारों के लिए उत्सुक, विज्ञान से लेकर खेल तक के क्षेत्र में प्रतिष्ठा अर्जित करने को तैयार, 21वीं सदी की जरूरतों के अनुरूप खुद को कौशल से लैस करने की इच्छुक, कर्तव्य की भावना से लैस पीढ़ी। उन्होंने कहा, “एनईपी इस कार्य में एक बड़ी भूमिका निभाएगी।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के विभिन्न मापदंडों में से, भारत का सबसे बड़ा प्रयास समानता की दिशा में है। उन्होंने कहा, “एनईपी की प्राथमिकता है कि भारत के प्रत्येक युवा को समान शिक्षा और शिक्षा का समान अवसर मिले।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह केवल स्कूल खोलने तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा के साथ-साथ संसाधनों के मामले में भी समानता लाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह है कि हर बच्चे को अपनी पसंद और क्षमता के अनुरूप विकल्प मिलना चाहिए। उन्होंने कहा, “शिक्षा में समानता का आशय इस बात है कि कोई भी बच्चा स्थान, वर्ग, क्षेत्र के कारण शिक्षा से वंचित न रहे।” उन्होंने बताया कि पीएम-श्री योजना के तहत हजारों स्कूलों को उन्नत किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “5जी के युग में ये आधुनिक स्कूल आधुनिक शिक्षा का माध्यम बनेंगे।” उन्होंने जनजातीय गांवों में एकलव्य स्कूलों, गांवों में इंटरनेट की सुविधाओं और दीक्षा, स्वयं एवं स्वयंप्रभा जैसे माध्यमों से शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “अब, भारत में शिक्षा के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी को तेजी से पूरा किया जा रहा है।”

प्रधानमंत्री ने व्यावसायिक शिक्षा को सामान्य शिक्षा के साथ एकीकृत करने के कदमों और शिक्षा को अधिक रोचक व संवादात्मक बनाने के तरीकों पर प्रकाश डाला। पूर्व में प्रयोगशाला और प्रायोगिक शिक्षा की सुविधा के कुछ मुट्ठी भर स्कूलों तक ही सीमित रहने की चर्चा करते हुए, प्रधानमंत्री ने अटल टिंकरिंग लैब पर प्रकाश डाला जहां 75 लाख से अधिक छात्र विज्ञान और नवाचार के बारे में सीख रहे हैं। उन्होंने कहा, “विज्ञान स्वयं को सभी के लिए सरल बना रहा है। ये युवा वैज्ञानिक ही महत्वपूर्ण परियोजनाओं का नेतृत्व करते हुए देश के भविष्य को आकार देंगे और भारत को दुनिया के एक अनुसंधान केन्द्र के रूप में स्थापित करेंगे।”

दुनिया द्वारा भारत को नई संभावनाओं की नर्सरी के रूप में देखे जाने के तथ्य को रेखांकित करते हुए, श्री मोदी ने कहा, “किसी भी सुधार के लिए साहस की जरूरत होती है और साहस की उपस्थिति नई संभावनाओं को जन्म देती है।” प्रधानमंत्री ने सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी और स्पेस टेक का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत की क्षमता के साथ प्रतिस्पर्धा करना आसान नहीं है। रक्षा प्रौद्योगिकी के बारे में बोलते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘कम लागत’ और ‘सर्वोत्तम गुणवत्ता’ वाले भारत के मॉडल का सफल होना निश्चित है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की औद्योगिक प्रतिष्ठा में वृद्धि और स्टार्टअप के विकास से जुड़े इकोसिस्टम के कारण दुनिया में भारत की शिक्षा प्रणाली के प्रति सम्मान काफी बढ़ा है। उन्होंने कहा कि सभी वैश्विक रैंकिंग में भारतीय संस्थानों की संख्या बढ़ रही है। उन्होंने जंजीबार एवं अबू धाबी में आईआईटी के दो परिसर खुलने की जानकारी दी। उन्होंने कहा, “कई अन्य देश भी हमसे अपने यहां आईआईटी के परिसर खोलने का आग्रह कर रहे हैं।” उन्होंने शिक्षा के इकोसिस्टम में आ रहे सकारात्मक बदलावों के कारण भारत में अपने परिसर खोलने के इच्छुक कई वैश्विक विश्वविद्यालयों का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि ऑस्ट्रेलिया के दो विश्वविद्यालय गुजरात की गिफ्ट सिटी में अपना परिसर खोलने वाले हैं। श्री मोदी ने शिक्षण संस्थानों को लगातार मजबूत करने और उन्हें भविष्य के लिए तैयार करने की दिशा में काम करने पर जोर दिया। उन्होंने भारत के संस्थानों, विश्वविद्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों को इस क्रांति का केन्द्र बनाने की जरूरत पर बल दिया।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि “सक्षम युवाओं का निर्माण ही एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण की सबसे बड़ी गारंटी है” और माता-पिता और शिक्षक इसमें प्रमुख भूमिका निभाते हैं। उन्होंने शिक्षकों एवं अभिभावकों से छात्रों को आत्मविश्वासपूर्ण जिज्ञासा और कल्पना की उड़ानों के लिए तैयार करने की अपील की। उन्होंने कहा, “हमें भविष्य पर नजर रखनी होगी और भविष्यवादी मानसिकता के साथ सोचना होगा। हमें बच्चों को पुस्तकों के दबाव से मुक्त करना होगा।”

प्रधानमंत्री ने उस जिम्मेदारी के बारे में चर्चा की, जो एक मजबूत भारत के प्रति वैश्विक जगत की बढ़ती जिज्ञासा के कारण हमारे कंधों पर आती है। उन्होंने विद्यार्थियों को योग, आयुर्वेद, कला और साहित्य के महत्व से परिचित कराने के बारे में याद दिलाया। अपने संबोधन का समापन करते हुए, उन्होंने शिक्षकों को 2047 में ‘विकसित भारत’ की दिशा में भारत की यात्रा में विद्यार्थियों की वर्तमान पीढ़ी के महत्व के बारे में याद दिलाया।

सभा को संबोधित करते हुए, श्री धर्मेंद्र प्रधान ने अखिल भारतीय शिक्षा समागम के उद्घाटन सत्र में सभी को प्रेरित करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व एवं निरंतर मार्गदर्शन से भारतीयता के मूल्यों को पुनः स्थापित करने तथा शिक्षा प्रणाली को 21वीं सदी के आधुनिक विचारों के साथ जोड़ने के प्रयासों को और गति मिल रही है। श्री प्रधान ने कहा कि एनईपी महात्मा गांधी, गुरुदेव टैगोर, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद जैसे महान व्यक्तित्वों द्वारा परिकल्पित समग्र, व्यापक एवं बहुआयामी शिक्षा के दृष्टिकोण को मूर्त रूप दे रहा है। एनईपी भारत को शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एक अगुआ के रूप में स्थापित कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस महाकुंभ से निकलने वाला अमृत हमारी आने वाली पीढ़ियों को और अधिक सक्षम एवं कुशल बनाएगा।   

प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण से प्रेरित होकर, युवाओं की प्रतिभा को संवारने और उन्हें अमृत काल में देश का नेतृत्व करने के लिए तैयार करने के उद्देश्य से एनईपी 2020 का शुभारंभ किया गया था। इसका लक्ष्य युवाओ को बुनियादी मानवीय मूल्यों पर आधारित रखते हुए भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना है। अपने कार्यान्वयन के तीन वर्षों के दौरान इस नीति ने स्कूल, उच्च और कौशल शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन किया है। 29 और 30 जुलाई को आयोजित होने वाला यह दो-दिवसीय कार्यक्रम शिक्षाविदों,  शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, उद्योग जगत के प्रतिनिधियों, शिक्षकों व स्कूलों, उच्च शिक्षा एवं कौशल संस्थानों के छात्रों तथा अन्य लोगों को अपनी अंतर्दृष्टि, सफलता की कहानियां एवं एनईपी 2020 को लागू करने से जुड़ी उत्कृष्ट कार्यप्रणालियों को साझा करने तथा इस नीति और आगे ले जाने के लिए रणनीतियां तैयार करने हेतु एक मंच प्रदान करेगा।

अखिल भारतीय शिक्षा समागम में 16 सत्र होंगे, जिनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच एवं प्रशासन, न्यायसंगत एवं समावेशी शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूह के मुद्दे, राष्ट्रीय संस्थान रैंकिंग फ्रेमवर्क, भारतीय ज्ञान प्रणाली, शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण सहित विभिन्न विषयों पर चर्चा होगी।

इस कार्यक्रम के दौरान, प्रधानमंत्री ने पीएम-श्री योजना के तहत धनराशि की पहली किस्त जारी की। ये स्कूल छात्रों को इस तरह से विकसित करेंगे कि वे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की परिकल्पना के अनुरूप एक समतापूर्ण, समावेशी एवं बहुलवादी समाज के निर्माण में संलग्न, उत्पादक और योगदान देने वाले नागरिक बनें।

इन सत्रों में विभिन्न राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों के शिक्षा/कौशल विभाग के प्रधान सचिव, आईआईटी, एनआईटी, आईआईआईटी, आईआईएसईआर, आईआईएससी के निदेशक, केंद्रीय, राज्य एवं निजी विश्वविद्यालयों के कुलपति, अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों के प्रमुख, विभिन्न स्कूलों व आईटीआई के फैकल्टी, प्रधानाचार्य/शिक्षक/छात्र, एनसीईआरटी, सीबीएसई, यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई, एनसीवीईटी, एसएससी, एनएसडीसी जैसे नियामक निकायों के प्रमुख/प्रतिनिधि और उद्योग एवं शिक्षा जगत के अन्य प्रमुख अधिकारी, सीआईआई, फिक्की, नैसकॉम, एसोचैम, आदि  के प्रमुख/प्रतिनिधियों सहित लगभग 3000 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

इन दो दिनों के दौरान उच्च शिक्षा, स्कूली शिक्षा और कौशल जैसे विभिन्न क्षेत्रों को शामिल करते हुए कुल 106 महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए जायेंगे।

श्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान (सीआईसीटी) की दस प्रमुख परियोजनाओं से संबंधित निम्नलिखित पुस्तकों का विमोचन भी किया:

• प्राचीन तमिल कृतियों के नियत संस्करण

• प्राचीन तमिल कृतियों का अनुवाद

• तमिल का ऐतिहासिक व्याकरण

• तमिल की प्राचीनता: एक अंतर-विषयी शोध

• तमिल बोलियों का समकालिक एवं ऐतिहासिक अध्ययन

• एक भाषाई क्षेत्र के रूप में भारत

• प्राचीन तमिल अध्ययनों के लिए डिजिटल लाइब्रेरी

• शास्त्रीय तमिल का ऑनलाइन शिक्षण

• शास्त्रीय तमिल कृतियों के लिए ग्रंथसंग्रह का विकास

• शास्त्रीय तमिल से संबंधित दृश्यात्मक कड़ियां

स्कूल तथा उच्च शिक्षा जगत और कौशल से जुड़े इकोसिस्टम की उत्कृष्ट पहलों को प्रदर्शित करने वाली एक प्रदर्शनी इस समारोह का एक प्रमुख आकर्षण थी। इस मल्टीमीडिया प्रदर्शनी में शिक्षा एवं कौशल परिदृश्य के तहत आने वाले संस्थानों व संगठनों, उद्योग जगत और प्रमुख हितधारकों द्वारा स्थापित 200 स्टॉल शामिल थे। इस प्रदर्शनी में भाग लेने वाले कुछ प्रदर्शकों में शामिल हैं- भारतीय ज्ञान प्रणाली, आइडिया लैब, विभिन्न स्टार्ट-अप, विभिन्न राज्यों के विश्वविद्यालय आदि। इस समारोह के दो दिनों के दौरान छात्रों, युवा स्वयंसेवकों और युवा संगम के प्रतिभागियों सहित दो लाख से अधिक लोगों के इस प्रदर्शनी में आने की उम्मीद है।

यह दो-दिवसीय कार्यक्रम 30 जुलाई 2023 को समापन सत्र के साथ संपन्न होगा। इस कार्यक्रम में केन्द्रीय शिक्षा तथा कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सहित अन्य सम्मानित गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहेंगे।