आज़ादी के बाद जब एक बार फिर इंग्लैंड के खिलाफ भारत-पाकिस्तान आए साथ

आज़ादी के बाद जब एक बार फिर इंग्लैंड के खिलाफ भारत-पाकिस्तान आए साथ

एशिया कप की शुरुआत 1984 में हुई थी। दरअसल 1983 वर्ल्ड कप फ़ाइनल में बीसीसीआई अध्यक्ष एनकेपी साल्वे को मैदान में एंट्री नहीं मिली थी। जिसके बाद नाराज़ होकर साल्वे ने वर्ल्ड कप को इंग्लैंड से बाहर निकालने की ठान ली और एशिया कप की शुरुआत की। अपनी इस बेइज्जती का बदला लेने में साल्वे का पाकिस्तान ने पूरा साथ दिया।

क्रिकेट का मैदान हो या आज़ादी की लड़ाई। पाकिस्तान और भारत ने हमेशा मिलकर अंग्रेजों का सामना किया है और उन्हें मात दी है। एशिया कप की शुरुआत भी कुछ इस तरह ही हुई थी। 1983 वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में इंग्लैंड द्वारा की गई भारत की बेइज्जती के बाद गुस्से में और बदला लेने के उद्देश्य से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने इस टूर्नामेंट की शुरुआत की थी। इसमें पाकिस्तान ने भारत का पूरा साथ दिया था।
भारत ने 1983 में कपिल देव की कप्तानी में वर्ल्ड कप जीता और विश्व क्रिकेट में अपना नाम बुलंद किया। इसके ठीक एक साथ बाद 1984 में एशिया कप की शुरुआत हुई। दरअसल 25 जून 1983 को भारत और वेस्टइंडीज के बीच खेले गए वर्ल्ड कप फ़ाइनल में तत्कालीन बीसीसीआई अध्यक्ष एनकेपी साल्वे को मैदान में एंट्री नहीं मिली थी। साल्वे या मैच स्टैंड से देखना चाहते थे और उनके पास स्टेडियम पास नहीं था। जब किसी देश की टीम पहली बार वर्ल्ड कप फ़ाइनल खेल रही हो और उनके बोर्ड के अध्यक्ष के साथ ऐसा वरताव हो तो ज़हीर है गुस्सा तो आयेगा।

साल्वे को यह बात नागवार गुजरी और वो गुस्से से भर गए। मगर उन्होंने अपना गुस्सा कुछ अलग अंदाज में जाहिर किया। साल्वे ने यह ठान लिया कि अब वो वर्ल्ड कप को इंग्लैंड से बाहर निकालकर ही रहेंगे। इंग्लैंड तब क्रिकेट का सुपरपावर था और यह काम इतना आसान भी नहीं था और यह बात साल्वे अच्छी तरह से जानते थे।

लेकिन साल्वे की इस ज़िद में उनका साथ पाकिस्तान ने दिया। इसके लिए साल्वे ने पूरा जोर लगाया, उन्होंने तब पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) के अध्यक्ष रहे नूर खान से बात की और उन्हें अपने साथ मिला लिया। इसके बाद श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड (SLC) के हेड गामिनी दिसानायके भी साथ आ गए और 19 सितंबर 1983 को नई दिल्ली में एशियन क्रिकेट कॉन्फ्रेंस (ACC) का गठन किया गया। जो अब एशियन क्रिकेट काउंसिल के नाम से जाना जाता है।